Just for Fun कभी हस भी लिया करो।

*Funniest one👌👌😍😍😍😍
दूकानदार ने डिब्बे से जूता निकाला , बढ़िया सा कपड़ा मारा और मुझे दिखाते हुए बोला - लो भाई साहब , यह जूता आपको सिर्फ सात सौ में पड़ेगा।

मैंने अपने पांवों में पहना जूता निकाला और लहराते हुए कहा -- यह तुम्हे सिर्फ पचास में पड़ेगा।

दूकानदार बोला -- हम पुराने जूते नहीं खरीदते।

मैंने कहा -- बेच कौन रहा है। मैं तो सिर्फ पचास रु में तुम्हे यह जूता मारूंगा। और सुनो , पचास रु भी मैं ही दूंगा।

दूकानदार गुस्से से लाल हो गया और चिल्लाया -- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे जूता मारने की।

मैंने भी चिल्लाते हुए कहा -- पैंट से बाहर ना निकल । मैं जूता मारकर पैसे तो दे रहा हूं। तुम तो जूता भी मार रहे थे और पैसे भी मुझसे ही ले रहे थे।

दूकानदार और भी कन्फ्यूज़ हो गया। हाथ जोड़ कर बोला-- भाई साहब मैंने तो जूता मारने की बात कही ही नहीं।

मैंने पूछा -- तुमने जूता दिखा कर क्या बोला था ? सात सौ में पड़ेगा। जूते पड़ने का मतलब समझते हो ?

अब उसकी जान में जान आई। शरमाते हुए बोला -- सॉरी भाई साहब , हम तो सभी को ऐसे ही बोलते हैं। आपकी तरह आज तक तो कोई नाराज़ नहीं हुआ। आप हिन्दी के मास्टर हैं न ?

मैंने खुश हो कर कहा -- शाबास ! सही पहचाना। कैसे पता चला ?

दूकानदार कुछ बोलता इससे पहले ही मेरी पत्नी बोल पड़ी -- तुम जिस तरह बाल की खाल निकालते हो, हर कोई पहचान लेगा। भूल गए कल ही तो ब्यूटी-पार्लर पर पिटते - पिटते बचे हो।

यह सुनकर दूकानदार को मजा आने लगा। बोला -- क्या हुआ था बहनजी ? बताओ न , भगवान की कसम , सौ रु छोड़ दूंगा।

पत्नी को लालच आ गया , बोली -- भैया ,उसके पार्लर के बाहर बोर्ड लगा था उसमें हिन्दी की तीन गलतियां थी। उससे भिड़ गए कि हिंदुस्तान में रह कर गलत हिन्दी बोलने -लिखने वाले देश के दुश्मन हैं। उसने इनका कॉलर पकड़ लिया था। वो तो भैया , मैंने छुड़वाया, नहीं तो इनके गाल पर एक पार्टी का चुनाव-चिह्न छाप देती।

दूकानदार अपना मोटा पेट हिला हिला कर बहुत देर हंसा और फिर कहने लगा -- बहन जी , सौ रु और कम कर दूंगा अगर इसी तरह की मजेदार बात और सुनाओ तो।

पत्नी को फिर लालच आ गया , बोली -- परसों मैंने पड़ौसी दूकानदार से पूछा -- भैया, अण्डे कैसे दिए। इस नालायक आदमी ने मुझे थप्पड़ जड़ दिया और बोला - अण्डों का भाव पूछो , तरीका मत पूछो। वैसे भी ये अण्डे मुर्गी ने दिए हैं , इस दूकानदार ने नहीं।

अबकी बार दूकानदार हो हो करके इतना हंसा कि उसकी आँखों में आंसू आ गए। बोला -- बस बहनजी , और मत सुनाना। इनके किस्से तो इतने होंगे कि सौ सौ रु कम होते जाएंगे और मुझे यह जूते फ्री देने पड़ेंगे।

मैंने कहा -- फ्री तो अब भी देने पड़ेंगे।

दूकानदार के माथे पर बल पड़ गए। बोला -- फ्री किस ख़ुशी में ?

मैंने मुस्कुरा कर कहा -- तुम दोनों ने एक दूसरे को इतनी बार भैया - बहनजी बोला है। बोला है न ?"

दूकानदार बोला - तो ?

मैंने कहा - अब अपने जीजा जी से पैसे भी लोगे ?

दोस्तो, उसके बाद क्या हुआ मुझे अब याद नहीं। मैं अस्पताल के बेड से यह पोस्ट लिख रहा हूं , बाएं हाथ से। दायां तो टूट गया , सर पर गूमड़ बना हुआ है और एक आँख भी सूजी हुई है। पत्नी हरेक मिलने आने वाले से यही बताती है -- जूते लेने गए थे , खा कर आ गए।

मैं उसे समझाना चाहता हूं कि खाई तो रोटी जाती है , जूते नहीं। लेकिन चुप हूं तो इस डर से कि पास में इंजेक्शन लिए डॉक्टर खड़ा है। मैंने पिछले हफ्ते इसी डॉक्टर को बताया था कि सही शब्द डेंगू नहीं बल्कि डेंगी होता है। यह डेंगू पर अड़ा हुआ था , मैं डेंगी पर। कोई फैसला नहीं हो पाया तो इसने मुझे उल्टा लिटा कर इतने जोर का इंजेक्शन लगाया था कि मैं तुरन्त मान गया था -- डेंगू ही होता है।

अब तक आप समझ ही गए होंगे , इस देश में मास्टर होना कितना टेढ़ा काम है।





Comments

Popular posts from this blog

Article on Jewar City Uttar Pradesh "जेवर" उत्तर प्रदेश बनने जा रहा है देश का गहना

How Small thinking stops Growth कैसे आपकी छोटी सोच आपको जीवन में तरक्की करने से रोकती है

My Experience on Winters सर्दियो के अह्सास